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मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

अनन्त

जन्म की सीमा नही
उम्र की सीमा नही
वो मुझसे कहते ठहर जाओ
मै सोचता मेरी कोई सीमा नही
पत्ते झरते
पतझर आता
फूल खिलते
वसंत आता
ना मै झरता हूँ
ना मै खिलता हूँ
जैसे कोई ग्रह सूर्य की परिक्रमा करता
मै सोचता मेरी कोई सीमा नही......

2 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

मैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!

Shalini kaushik ने कहा…

bahut bhavpoorn abhvyakti.mere blog kaushal par aane ke liye hardik dhanyawad