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मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

जीवन का आभास....................

एक दिन मैं
चलता जा रहा था
उस दिशा को
जिसका मुझे भी पता न था
एक दिन मैं देख रहा था
अनंत फैले आकाश को
हवा में हिलती डालियों को,
एक पल मैं सोच रहा था
शायद जिंदगी भोग रहा था
एक रात मैं सो रहा था
शायद सपने बो रहा था
एक दिन/शाम को
मैं खामोश बैठा
पर्वतों को निहार रहा था
प्रिय को दुलार रहा था

एक दिन मैं
पीडा से तडप रहा था
बिजली सा कडक रहा था
शायद जीवन का आभास कर रहा था ।
---(दूर कहीं सन्नाटा है से)