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बुधवार, 31 दिसंबर 2008

नव वर्ष 2009 की शुभकामनाऐं..............


नव वर्ष 2009 सभी चिठठाकारों को मंगलमय हो

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

जीनियस रफी -24 दिसंबर जन्मदिन पर विशेष








मोहम्मद रफी कितने जीनियस थे इस बात का खुलासा संगीतकार रवि ने किया कि सिंगापुर में स्टेज प्रोग्राम चल रहा था फिलम - `अपना बना के देखो" का गीत- राज ए दिल उनसे छुपाया ना गया , काफी लोकप्रिय हो रहा था स्टेज पर यह गीत गाते हुऐ रफी गीत की लय भूल गये मगर रफी ने गीत को एक अलग ही लय में गा कर श्रोताओ की वाहवाही लूट ली । फिलम- अपना बना के देखो


संगीतकार- रवि


गीतकार- असद भोपाली


गायक - मोहम्मद रफी





गीत को सुन ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिए - http://www.guruji.com/

मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

आवाज के जादूगर-मोहम्मद रफी (24दिसंबर1924- जन्मदिन)




मोहम्मद रफी जिन का नाम लेते ही संगीत के खजाने खुल जाते हैं आवाज के इस जादूगर का जन्म 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर के छोटे से गांव कोटला सुलतानसिंह में हुआ था मोहम्मद रफी ही विशव के एकमात्र गायक हैं जिन्होनें सर्वाधिक नायको को आवाज दी, पृथ्वीराज कपूर की तीन पीढियों को स्वर देने का एकमात्र श्रेय भी रफी को ही जाता है वर्ष 1970 से 72 तक किशोर कुमार वेव के चलते रफी साहब को 2 वर्षो तक लगभग खाली बैठना पडा तब किसी के पूछने पर कि आजकल किशोर के गीत बज रहे हैं आप के नहीं, इसपर रफी साहब ने मुस्कुरा कर जवाब दिया कि किशोर के सुर किशोर के पास हैं मेरे सुर मेरे पास। सच ही कहा था रफी साहब ने। छठे दशक में बिनाका गीतमाला में प्रत्येक सप्ताह 16 गीत बजते थे जिसमे 12 गीत रफी साहब के होते थे शेष अन्य गायक गायिकाओ के..क्रमश

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

वक्त का देखा मैंने................

मैंने देखा शीशे को



शीशे ने देखा मुझे



समझ ना आया



बचपन की यादें



जवानी की बातें



बुढापे की झुर्रियाँ



सच, वक्त को देखा मैंने शीशे में

अव्वल से आखीर तक....................

फिर दूर
बहुत दूर
जहाँ पुकार सके न कोई
शून्य में डूब चुके
सवालों को उभार सके न कोई
और हाँ, धरती के किसी छोर तक
मैं तो क्या,
सूरज भी हार जाता भोर तक
क्या मिलेगा उसे
क्या मिला है मुझे
कुछ किताबों का बोझ उठाए
अव्वल से आखीर तक
सबको उलझाए
एक बार फिर
अपने अस्तित्व को ही
भूल जाएँ
माँ की गोद में
बचपन को बुला लाएँ
---(दूर कहीं सन्नाटा है से)

मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

जीवन का आभास....................

एक दिन मैं
चलता जा रहा था
उस दिशा को
जिसका मुझे भी पता न था
एक दिन मैं देख रहा था
अनंत फैले आकाश को
हवा में हिलती डालियों को,
एक पल मैं सोच रहा था
शायद जिंदगी भोग रहा था
एक रात मैं सो रहा था
शायद सपने बो रहा था
एक दिन/शाम को
मैं खामोश बैठा
पर्वतों को निहार रहा था
प्रिय को दुलार रहा था

एक दिन मैं
पीडा से तडप रहा था
बिजली सा कडक रहा था
शायद जीवन का आभास कर रहा था ।
---(दूर कहीं सन्नाटा है से)

शनिवार, 22 नवंबर 2008

शून्य.......मैं शून्य हूँ

आज

ऐक सवाल मैं

स्वयं से पूछ रहा हूँ
मैं कोन हूँ...
तुम कोन हो..
वो कोन है..
जब मुझे
मेरा ही पता नहीं
तो फिर
मैं किसे खोज रहा हूँ
मैं ....
मैं शून्य हूँ
तुम.....

मंगलवार, 18 नवंबर 2008

कितना तन्हा हूँ....

एक हवा का झोंका आया
बंद पडे दरवाजे को
किसी कोने में खडे पोधे को
कँपा गया
मुझे कुछ याद दिला गया
कुछ बिसरा गया
क्या कुछ बदला है..
वैसे ही तो शाम है
वैसे ही सुबह, रात है
नहीं.....तो फिर
कहाँ गये मेरे अपने
बचपन के मीठे सपने
सरहदों के उस पार जाने का जोश
कितना तन्हा हूँ जब से आया मुझे होश
- (दूर कहीं सन्नाटा है से)

गुरुवार, 13 नवंबर 2008

सन्नाटा.......................कविता

सन्नाटे को
कभी जाना है तुम ने ।
दूर तक फैले पर्वतों को
सदियो से खामोश
पत्थरों को..
बर्फ की चादर ओढे
शिखरों को
रेतीले टीले पे
उगती नागफनी को
कहीं देखा है तुम ने
सन्नाटे को...
सुदूर फैले मैदान पे
झुके आसमान को,
जेठ की भरी दुपहरी में
हाँक लगाते हरकारे को
रात के किसी पहर में
चीखते-चिललाते चमगादडों को
जब कोई शाम उदास हो जाए
चाँद से मुलाकात न हो पाए
पेडों के झुरमुटों में
दिल के किसी कोने में
जिंदगी और जिंदगी
मोत और मोत
के बीच कहीं सन्नाटा है
--------दूर कहीं सन्नाटा है , से

बुधवार, 12 नवंबर 2008

प्रतिरूप मानव.....

होड लगी है मकानो में
दोड लगी है इनसानों में
कोन किस से आगे जायेगा
नदी सुखा कर रेगिस्तान बनायेगा
कोन कितने वृक्ष काट कर
क्रंक्रीट के जंगल उगायेगा
आकाश को धुँऐ से ढंक
विलासिता का ग्राफ बढायेगा
मानव नहीं,प्रतिरूप मानव
मानव को जन्मायेगा ....

सोमवार, 10 नवंबर 2008

फतवेबाजी के युग में


आजकल मुसलिम विद्वान फतवा देने को आतुर रहते हैं जैसे अभी हाल ही में डा0 जाकिर नाइक पर लखनऊ में मोलाना फिरंगी महली ने डा0 जाकिर नाइक पर पैगंबर मुहम्मद की शान में गुसताखी के लिऐ फतवा दे दिया, शायद फिरंगी महली ये भूल गये हैं कि डा0 जाकिर नाइक ने इसलाम की कितनी सेवा की है डा0 जाकिर नाइक का दोष केवल इतना सा है कि नाइक ने यजीद को यजीद रहमतुल्लाअलै बता दिया था इस पर मुसलिम विद्वानों को भडकने की जगह पर डा0 जाकिर नाइक को अपनी गलती सुधार ने को कहना चाहिये था तिस पर ये उलेमा जालिमपन व संकीर्णता फैलाते हैं समाज में ,ऐसे उलेमाऔ को कोई अधिकार नहीं होना चाहिये फतवे देने का । मुसलिम समाज पहले से ही कुख्यात है अपनी दकियानूसी विचारधारा के लिऐ,बस अब बहुत हो गया अब और आग में घी ना डालो । प्रेम और भईचारे का संदेश देकर समाज को जोडने का काम करना चाहिये तोडने का नहीं ।
यहँ ये भी उललेखनीय है कि डा0 जाकिर नाइक( पीस ) नाम से ऐक इसलामी चैनल चलाते हैं

रविवार, 9 नवंबर 2008

अतीत(कविता)-सपना जैसे अतीत हुआ, जीवन ऐसे प्रतीत हुआ

अतीत में मेरा जन्म हुआ
अतीत में तुम्हारा भी
पोधा वृक्ष बना
सपना सच हुआ
बर्फ पानी हुआ
नदिया बही
सागर में समायी
सागर पानी-पानी हुआ
जीवन कहानी हुआ
भविष्य वर्तमान हुआ
वर्तमान अतीत हुआ
सपना जैसे अतीत हुआ
जीवन ऐसे प्रतीत हुआ

गुरुवार, 6 नवंबर 2008

लावा

मेरे भीतर



धधक रहा है एक ज्वालामुखी



विद्रोह



लोभ



क्रोध

हैवानियत

का



जिस से लावा फूट निकलेगा....



पाषाणीय सभ्यता से



शवेत-अशवेत क्लोन तक



धुंध फैल जायेगी फिर स्वार्थो तक



बह जायेंगे .........



आदर्श



दया



धर्म



लुप्त हो जायेंगे डायनासोर



फिर जीवित हों उठेंगे



चंगेज खाँ -हिटलर



-आदिल फारसी





गजल


गुलदानों में फिर फूल खिलें हैं
बरसों में वो फिर आज मिले हैं
कहना तो था उन से सब कुछ
उन के भी कुछ शिकवे गिले हैं
सच तो दिल में छिपा हुआ है
फिर भी मेरे होंठ सिले हैं
कान लगाऔ सुन कर देखो
खामोशी के भी होंठ हिले हैं
बरसो बीते जुदा हुऐ
जब भी सोचा अभी मिले हैं
-आदिलफारसी

मंगलवार, 4 नवंबर 2008

हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है....

असोम में हिन्दीभाषियों की हत्या महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर कहर असोम में बम विस्फोट दिल्ली में बम विसफोट...अलपसंख्यक की बात बहुसंख्यक की बात सवर्ण-दलित की राजनीति...बस बहुत हो चुका है इन राजनीतिक दलों को अपनी अपनी पडी है देश की चिंता नहीं... वो दिन कब आयेगा जब हम मिलकर कहेंगे कि हम कशमीरी, मराठी, असमी, बंगाली नहीं हम हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई नहीं पहले हम भारतवासी हैं...

सिगरेट पीजिये.. नो प्राब्लम

जी हाँ । अब आप भी सिगरेट का कश ले सकते हैं जो आप को हानि नही लाभ देती है अहमदाबाद की ऐक कम्पनी ने निर्दोष नाम से हर्बल सिगरेट बनायी है जिस में तुलसी,हलदी,लोंग,मुलैठी,अजवायन,गूगल,तामलपत्र,पान की जड,सुगंधवाला,यषटमधु का प्रयोग किया गया है

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2008

महाराष्ट्र बनाम भारत

आजकल महाराष्ट्र खास कर मुंबई में क्षेत्रवाद की हिंसा फैला कर ऱाज ठाकरे स्वयं पर गर्व कर रहे होंगे.वास्तव में ऐसा है नहीं,ठाकरे परिवार मुंबई को अपनी बपोती समझता है हम भारतीय मराठा सरदार छत्रपति शिवाजी के गुण गाते हैं ये हमारे मराठी भाईयों को क्या हो गया है जो मराठी,मराठी का नारा लगा रहे हैं भारत- भारत अखंड भारत का नहीं...अफसोस ।

भारत कई राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशो से मिल कर बना है हमारी अनेकता में ही ऐकता है।

ऐसा नही हो सकता कि मुंबई को केन्द्रशासित कर दिया जाये....

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008

याद


पुराने दरख्र्त के साये तले
याद आया कोई मुझे
जो रोशन था कल
जलता था पल पल
था हमारा हिस्सा हम में से कोई
शायद मै,शायद तुम, शायद....
अब दरख्र्त हिलता है हवा से
टूटते हैं पत्ते बिखरते हैं
अब दरख्र्त खामोश खडा है
फिर भी टूटते हैं पत्ते बिखरते है
कल जो देखा वो आज नहीं
जो आज देखा वो कल नहीं
फिर सोच रहा हूँ
मैं कल था, आज हूँ, कल.........

मोल...अनमोल

माँ की ममता,बहन भाई का प्र्यार...क्र्या इन रिशतों का कोई मोल है....आज के इनसान को देख कर धुटन महसूस होती है,आज के इनसान का कोई उददेशय नहीं धनलोलुपता के आगे................किराये की कोख,जिँदा गोशत..इस से भी दस कदम आगे है...लिव इन रिलेशनशिप

गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

महेन्दर कपूर

मशहूर गायक महेंद्र कपूर का २७ सितबर को निधन हो गया । हमारे मीडिया की देखे, पाश्वॅ गायन के
क्षेत्र मे एक लीजेनड महेंद्र कपूर को सिरे से नकार दिया । आखिर हमारी मीडिया को क्या हो गया है,
मेरे देश की धरती, चलो एक बार फिर से अजनबी, नीले गगन के तले, तुम अगर साथ देने का, मेरा प्यार वो है, तुम्हारा चाहने वाला खुदा की दुनिया मे,दिन है बहार के तेरे मेरे इकरार के, जैसे मधुर गीत देने वाले गायक महेंद्र कपूर को भुलाना आसान है नही । फिल्म फेयर, नेशनल एवाडॅ, पदम श्री प्राप्त
महेंद्र कपूर भारत के नबर एक गायक मोहम्म्द रफी को अपना आदशॅ मानते थे ।

केनवास पर

पहाड़ से जब दूर......
नीचे देखता
कल कल बहती नदी
झर झर गिरता झरना
जीवन की उमॅग मे दोड़ता फिरता पहाड़
शिखरो को चूमते बादल
ढालो पर लुढकते पत्थर
खामोश खामोश फिजा
बहकी बहकी हवा
चहकती फुदकती चिड़िया
उछलते कूदते बन्दर
नजर उठाए जहाँ तक
मुझे देखता पहाड़
मे पहाड़ को जला कर
झरने को बोतल मे बंद करता
कैनवास पर फिर एक नया पहाड़ बनाता ।

जिज्ञासा

मन फिर वही बात सोचता है ऐसा क्य़ो वैसा क्यों
दिन डूबा रात भी आई मगर मन की जिज्ञासा ज्यों की त्यों पाई
फूलो की कोमलता अनुभव की, काँटो की चुभन भी सही
मगर पत्थर को पत्थर, शीशे की बात समझ ना आई
मन...................................... फिर वही बात सोचता है ..