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शनिवार, 11 दिसंबर 2010

गज़ल

आँख मॅ स्वपन कब था किसी रात का
दर्द दिल मॅ था शायद तेरी घात का
तूने मुड़ कर मेरी सिम्त देखा नही
मुझे अफ़सोस कब हॅ तेरी बात का
कितने मन्ज़र बहारों के थे हर तरफ़
याद आता हॅ वो दिन तेरे साथ का
क्युं मॅ समझू ये चाल किस की रही
मुझ को अफ़सोस कब हॅ किसी मात का

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

अस्तित्व


इन ज़ड़ो मे खोजो मुझे
इन घड़ो मे खोजो मुझे
इन दरो-दीवारो मे
रास्ते के शह्सवारो मे
खोजो मुझे
ज़मीनो-ओ-आसमानो मे
अनकही दास्तानो मे
खोजो मुझे
क्या कभी मै था
या तुम थे
जैसे दरीया का पानी