आँख मॅ स्वपन कब था किसी रात का
दर्द दिल मॅ था शायद तेरी घात का
तूने मुड़ कर मेरी सिम्त देखा नही
मुझे अफ़सोस कब हॅ तेरी बात का
कितने मन्ज़र बहारों के थे हर तरफ़
याद आता हॅ वो दिन तेरे साथ का
क्युं मॅ समझू ये चाल किस की रही
मुझ को अफ़सोस कब हॅ किसी मात का