सन्नाटे को
कभी जाना है तुम ने ।
दूर तक फैले पर्वतों को
सदियो से खामोश
पत्थरों को..
बर्फ की चादर ओढे
शिखरों को
रेतीले टीले पे
उगती नागफनी को
कहीं देखा है तुम ने
सन्नाटे को...
सुदूर फैले मैदान पे
झुके आसमान को,
जेठ की भरी दुपहरी में
हाँक लगाते हरकारे को
रात के किसी पहर में
चीखते-चिललाते चमगादडों को
जब कोई शाम उदास हो जाए
चाँद से मुलाकात न हो पाए
पेडों के झुरमुटों में
दिल के किसी कोने में
जिंदगी और जिंदगी
मोत और मोत
के बीच कहीं सन्नाटा है
--------दूर कहीं सन्नाटा है , से
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गुरुवार, 13 नवंबर 2008
बुधवार, 12 नवंबर 2008
प्रतिरूप मानव.....
सोमवार, 10 नवंबर 2008
फतवेबाजी के युग में
आजकल मुसलिम विद्वान फतवा देने को आतुर रहते हैं जैसे अभी हाल ही में डा0 जाकिर नाइक पर लखनऊ में मोलाना फिरंगी महली ने डा0 जाकिर नाइक पर पैगंबर मुहम्मद की शान में गुसताखी के लिऐ फतवा दे दिया, शायद फिरंगी महली ये भूल गये हैं कि डा0 जाकिर नाइक ने इसलाम की कितनी सेवा की है डा0 जाकिर नाइक का दोष केवल इतना सा है कि नाइक ने यजीद को यजीद रहमतुल्लाअलै बता दिया था इस पर मुसलिम विद्वानों को भडकने की जगह पर डा0 जाकिर नाइक को अपनी गलती सुधार ने को कहना चाहिये था तिस पर ये उलेमा जालिमपन व संकीर्णता फैलाते हैं समाज में ,ऐसे उलेमाऔ को कोई अधिकार नहीं होना चाहिये फतवे देने का । मुसलिम समाज पहले से ही कुख्यात है अपनी दकियानूसी विचारधारा के लिऐ,बस अब बहुत हो गया अब और आग में घी ना डालो । प्रेम और भईचारे का संदेश देकर समाज को जोडने का काम करना चाहिये तोडने का नहीं ।
यहँ ये भी उललेखनीय है कि डा0 जाकिर नाइक( पीस ) नाम से ऐक इसलामी चैनल चलाते हैं
यहँ ये भी उललेखनीय है कि डा0 जाकिर नाइक( पीस ) नाम से ऐक इसलामी चैनल चलाते हैं
रविवार, 9 नवंबर 2008
अतीत(कविता)-सपना जैसे अतीत हुआ, जीवन ऐसे प्रतीत हुआ
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