कभी जाना है तुम ने ।
दूर तक फैले पर्वतों को
सदियो से खामोश
पत्थरों को..
बर्फ की चादर ओढे
शिखरों को
रेतीले टीले पे
उगती नागफनी को
कहीं देखा है तुम ने
सन्नाटे को...

सुदूर फैले मैदान पे
झुके आसमान को,
जेठ की भरी दुपहरी में
हाँक लगाते हरकारे को
रात के किसी पहर में
चीखते-चिललाते चमगादडों को
जब कोई शाम उदास हो जाए
चाँद से मुलाकात न हो पाए
पेडों के झुरमुटों में
दिल के किसी कोने में
जिंदगी और जिंदगी
मोत और मोत
के बीच कहीं सन्नाटा है
--------दूर कहीं सन्नाटा है , से