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गुरुवार, 13 नवंबर 2008

सन्नाटा.......................कविता

सन्नाटे को
कभी जाना है तुम ने ।
दूर तक फैले पर्वतों को
सदियो से खामोश
पत्थरों को..
बर्फ की चादर ओढे
शिखरों को
रेतीले टीले पे
उगती नागफनी को
कहीं देखा है तुम ने
सन्नाटे को...
सुदूर फैले मैदान पे
झुके आसमान को,
जेठ की भरी दुपहरी में
हाँक लगाते हरकारे को
रात के किसी पहर में
चीखते-चिललाते चमगादडों को
जब कोई शाम उदास हो जाए
चाँद से मुलाकात न हो पाए
पेडों के झुरमुटों में
दिल के किसी कोने में
जिंदगी और जिंदगी
मोत और मोत
के बीच कहीं सन्नाटा है
--------दूर कहीं सन्नाटा है , से

5 टिप्‍पणियां:

Jimmy ने कहा…

Good Work Ji


Shyari is here plz visit karna ji

http://www.discobhangra.com/shayari/romantic-shayri/

sandhyagupta ने कहा…

Bahut achchi rachna.Badhai.

admin ने कहा…

बहुत खूब। भले ही आज हम इतनी भीड में रहते हैं, पर फिरभी हमारे चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ है।

Prakash Badal ने कहा…

सन्नाटा बहुत् कुछ कहता है। बहुत खूब्

prakashbadal.blogspot.com

vandana gupta ने कहा…

har dil mein sannata hai,jahan dekho wahan sannata hai.............sashakt abhivyakti