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काव्य सन्ग्रह, 1 -हवा के फूल 1993 2-दूर कहीं सन्र्नाटा है 1998
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सोमवार, 6 अप्रैल 2009
जीवन...
सफर एक गुलिस्ताँ का
काटों फूलो के साथ
गर घायल दिल भी है
तो फूल बिखरे हैं जिस्म-जिस्म
मुझ से मत पूछो अब कुछ
कैसे बीता ये जीवन
वो कहता है अच्छा
मैं कहता हूँ बस ठीक
ना शिकायत तुझ से
ना शिकवा किसी से कोई....।
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