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मंगलवार, 21 अक्तूबर 2008

याद


पुराने दरख्र्त के साये तले
याद आया कोई मुझे
जो रोशन था कल
जलता था पल पल
था हमारा हिस्सा हम में से कोई
शायद मै,शायद तुम, शायद....
अब दरख्र्त हिलता है हवा से
टूटते हैं पत्ते बिखरते हैं
अब दरख्र्त खामोश खडा है
फिर भी टूटते हैं पत्ते बिखरते है
कल जो देखा वो आज नहीं
जो आज देखा वो कल नहीं
फिर सोच रहा हूँ
मैं कल था, आज हूँ, कल.........

मोल...अनमोल

माँ की ममता,बहन भाई का प्र्यार...क्र्या इन रिशतों का कोई मोल है....आज के इनसान को देख कर धुटन महसूस होती है,आज के इनसान का कोई उददेशय नहीं धनलोलुपता के आगे................किराये की कोख,जिँदा गोशत..इस से भी दस कदम आगे है...लिव इन रिलेशनशिप