
पुराने दरख्र्त के साये तले
याद आया कोई मुझे
जो रोशन था कल
जलता था पल पल
था हमारा हिस्सा हम में से कोई
शायद मै,शायद तुम, शायद....
अब दरख्र्त हिलता है हवा से
टूटते हैं पत्ते बिखरते हैं
अब दरख्र्त खामोश खडा है
फिर भी टूटते हैं पत्ते बिखरते है
कल जो देखा वो आज नहीं
जो आज देखा वो कल नहीं
फिर सोच रहा हूँ
मैं कल था, आज हूँ, कल.........
याद आया कोई मुझे
जो रोशन था कल
जलता था पल पल
था हमारा हिस्सा हम में से कोई
शायद मै,शायद तुम, शायद....
अब दरख्र्त हिलता है हवा से
टूटते हैं पत्ते बिखरते हैं
अब दरख्र्त खामोश खडा है
फिर भी टूटते हैं पत्ते बिखरते है
कल जो देखा वो आज नहीं
जो आज देखा वो कल नहीं
फिर सोच रहा हूँ
मैं कल था, आज हूँ, कल.........