एक हवा का झोंका आया बंद पडे दरवाजे को किसी कोने में खडे पोधे को कँपा गया मुझे कुछ याद दिला गया कुछ बिसरा गया क्या कुछ बदला है.. वैसे ही तो शाम है वैसे ही सुबह, रात है नहीं.....तो फिर कहाँ गये मेरे अपने बचपन के मीठे सपने सरहदों के उस पार जाने का जोश कितना तन्हा हूँ जब से आया मुझे होश - (दूर कहीं सन्नाटा है से)