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शनिवार, 22 नवंबर 2008

शून्य.......मैं शून्य हूँ

आज

ऐक सवाल मैं

स्वयं से पूछ रहा हूँ
मैं कोन हूँ...
तुम कोन हो..
वो कोन है..
जब मुझे
मेरा ही पता नहीं
तो फिर
मैं किसे खोज रहा हूँ
मैं ....
मैं शून्य हूँ
तुम.....

मंगलवार, 18 नवंबर 2008

कितना तन्हा हूँ....

एक हवा का झोंका आया
बंद पडे दरवाजे को
किसी कोने में खडे पोधे को
कँपा गया
मुझे कुछ याद दिला गया
कुछ बिसरा गया
क्या कुछ बदला है..
वैसे ही तो शाम है
वैसे ही सुबह, रात है
नहीं.....तो फिर
कहाँ गये मेरे अपने
बचपन के मीठे सपने
सरहदों के उस पार जाने का जोश
कितना तन्हा हूँ जब से आया मुझे होश
- (दूर कहीं सन्नाटा है से)