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सोमवार, 1 मार्च 2010

माँ

खिले फिर गुलाब
सावन भी बरसा
बीते दिन गए कहाँ
मन रह रह तरसा
फिर आई बहारे
भँवरे भी डोले
रूठे थे जो कल
ना आए फिर वो पल
सब कुछ है घर में
कँप्युटर पोर्च मे कार भी
माँ की दुआऐँ गयी कहाँ
जैसे नजरे थक गयी वहाँ

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