काव्य सन्ग्रह, 1 -हवा के फूल 1993 2-दूर कहीं सन्र्नाटा है 1998
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सोमवार, 1 मार्च 2010
माँ
खिले फिर गुलाब सावन भी बरसा बीते दिन गए कहाँ मन रह रह तरसा फिर आई बहारे भँवरे भी डोले रूठे थे जो कल ना आए फिर वो पल सब कुछ है घर में कँप्युटर पोर्च मे कार भी माँ की दुआऐँ गयी कहाँ जैसे नजरे थक गयी वहाँ
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