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गुरुवार, 6 नवंबर 2008

लावा

मेरे भीतर



धधक रहा है एक ज्वालामुखी



विद्रोह



लोभ



क्रोध

हैवानियत

का



जिस से लावा फूट निकलेगा....



पाषाणीय सभ्यता से



शवेत-अशवेत क्लोन तक



धुंध फैल जायेगी फिर स्वार्थो तक



बह जायेंगे .........



आदर्श



दया



धर्म



लुप्त हो जायेंगे डायनासोर



फिर जीवित हों उठेंगे



चंगेज खाँ -हिटलर



-आदिल फारसी





3 टिप्‍पणियां:

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

सुंदर रचना के लिये आपको बधाई

adil farsi ने कहा…

धन्यवाद योगेन्द्र मोदगिल जी ..

Alpana Verma ने कहा…

sundar tariqe se chuninda shbdon mein apni baat kah di-
achcha laga..