धधक रहा है एक ज्वालामुखी
विद्रोह
लोभ
क्रोध
हैवानियत
का
जिस से लावा फूट निकलेगा....
पाषाणीय सभ्यता से
शवेत-अशवेत क्लोन तक
धुंध फैल जायेगी फिर स्वार्थो तक
बह जायेंगे .........
आदर्श
दया
धर्म
लुप्त हो जायेंगे डायनासोर
फिर जीवित हों उठेंगे
चंगेज खाँ -हिटलर
-आदिल फारसी
3 टिप्पणियां:
सुंदर रचना के लिये आपको बधाई
धन्यवाद योगेन्द्र मोदगिल जी ..
sundar tariqe se chuninda shbdon mein apni baat kah di-
achcha laga..
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