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गुरुवार, 6 नवंबर 2008

गजल


गुलदानों में फिर फूल खिलें हैं
बरसों में वो फिर आज मिले हैं
कहना तो था उन से सब कुछ
उन के भी कुछ शिकवे गिले हैं
सच तो दिल में छिपा हुआ है
फिर भी मेरे होंठ सिले हैं
कान लगाऔ सुन कर देखो
खामोशी के भी होंठ हिले हैं
बरसो बीते जुदा हुऐ
जब भी सोचा अभी मिले हैं
-आदिलफारसी

3 टिप्‍पणियां:

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

achhk gazal kahi........
kya baat hai...
badhai,,

PREETI BARTHWAL ने कहा…

आदिल जी बहुत अच्छा लिखा है।

Alpana Verma ने कहा…

कान लगाऔ सुन कर देखो
खामोशी के भी होंठ हिले हैं

bahut anoothey khyal hain!
wah!