गुलदानों में फिर फूल खिलें हैं
बरसों में वो फिर आज मिले हैं
कहना तो था उन से सब कुछ
उन के भी कुछ शिकवे गिले हैं
सच तो दिल में छिपा हुआ है
फिर भी मेरे होंठ सिले हैं
कान लगाऔ सुन कर देखो
खामोशी के भी होंठ हिले हैं
बरसो बीते जुदा हुऐ
जब भी सोचा अभी मिले हैं
-आदिलफारसी
3 टिप्पणियां:
achhk gazal kahi........
kya baat hai...
badhai,,
आदिल जी बहुत अच्छा लिखा है।
कान लगाऔ सुन कर देखो
खामोशी के भी होंठ हिले हैं
bahut anoothey khyal hain!
wah!
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