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मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

जीवन का आभास....................

एक दिन मैं
चलता जा रहा था
उस दिशा को
जिसका मुझे भी पता न था
एक दिन मैं देख रहा था
अनंत फैले आकाश को
हवा में हिलती डालियों को,
एक पल मैं सोच रहा था
शायद जिंदगी भोग रहा था
एक रात मैं सो रहा था
शायद सपने बो रहा था
एक दिन/शाम को
मैं खामोश बैठा
पर्वतों को निहार रहा था
प्रिय को दुलार रहा था

एक दिन मैं
पीडा से तडप रहा था
बिजली सा कडक रहा था
शायद जीवन का आभास कर रहा था ।
---(दूर कहीं सन्नाटा है से)

3 टिप्‍पणियां:

Tum ने कहा…

Thank you for encouraging and visiting my blog !!!!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

बेहतरीन कविता के लिये बधाई स्वीकारें

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

kahan ho janaab ?