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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

वक्त का देखा मैंने................

मैंने देखा शीशे को



शीशे ने देखा मुझे



समझ ना आया



बचपन की यादें



जवानी की बातें



बुढापे की झुर्रियाँ



सच, वक्त को देखा मैंने शीशे में

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया लिखा है।

vandana gupta ने कहा…

bahut achcha likha hai .....waqt ka pata hi nhi kya kya dekhta hai aur dikhata hai aur aaina ban jata hai zindagi ka