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गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

केनवास पर

पहाड़ से जब दूर......
नीचे देखता
कल कल बहती नदी
झर झर गिरता झरना
जीवन की उमॅग मे दोड़ता फिरता पहाड़
शिखरो को चूमते बादल
ढालो पर लुढकते पत्थर
खामोश खामोश फिजा
बहकी बहकी हवा
चहकती फुदकती चिड़िया
उछलते कूदते बन्दर
नजर उठाए जहाँ तक
मुझे देखता पहाड़
मे पहाड़ को जला कर
झरने को बोतल मे बंद करता
कैनवास पर फिर एक नया पहाड़ बनाता ।

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